ना चाँद,ना शोला, शबनम
न फूलो का हार
तू एक समन्दर खारा
वो पावन गंगा की धार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार ,
लड़कियाँ होती नहीं लाचार....
हर रिश्ते का कर्ज चुकाएं ...
मर्यादाओ का बोझ उठायें...
बेटी ,बहन, प्रेमिका और माँ ...
क्या इतना ही है ओरत का सार ?
लड़कियाँ होती नहीं लाचार ,
लड़कियाँ होती नहीं लाचार....
हर रिश्ते का कर्ज चुकाएं ...
मर्यादाओ का बोझ उठायें...
बेटी ,बहन, प्रेमिका और माँ ...
क्या इतना ही है ओरत का सार ?
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
ना ही ये संवाद नया ...
ना ही है ये बात नयी,
सदियों से ये चलता आया
पुरुषों ने ही बेचारी बनाया ..
स्वार्थ हैं तुम्हारे सब झूठे दस्तूर ..
खुद को समझ बैठी मजबूर
सीता, द्रौपदी, गार्गी..
ना ही ये संवाद नया ...
ना ही है ये बात नयी,
सदियों से ये चलता आया
पुरुषों ने ही बेचारी बनाया ..
वो धारिका है तुम्हारे वजूद कि
देती तुम्हे आकार ....
.
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
अपनी अपनी सबने कही,
उसका मर्म ना जाने कोय..
अपनी अपनी सबने कही,
उसका मर्म ना जाने कोय..
कैसी शिकायत तुमसे कविवर,
तुम कोई कृष्ण नहीं ..
और ये गीता का नहीं सार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार ..
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
स्वार्थ हैं तुम्हारे सब झूठे दस्तूर ..
खुद को समझ बैठी मजबूर
सीता, द्रौपदी, गार्गी..
इंदिरा हो या कल्पना
और ना जाने कितने नाम
जिनके दम पर होते देखा
अपना हिंद साकार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
त्याग की है प्रतिमा नारी
हर रिश्ते पे खुद को है हारी
ममता स्नेह समर्पण पूजा
.इन सबकी सूरत है नारी
अंधे मूर्ख पति के खातिर
जाने क्यूं बन बैठी गांधार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार .
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
पुरुष होते है कितने लाचार
इसका है उसे एहसास
भरी सभा में कुल-वधु का
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
त्याग की है प्रतिमा नारी
हर रिश्ते पे खुद को है हारी
ममता स्नेह समर्पण पूजा
.इन सबकी सूरत है नारी
अंधे मूर्ख पति के खातिर
जाने क्यूं बन बैठी गांधार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार .
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
पुरुष होते है कितने लाचार
इसका है उसे एहसास
भरी सभा में कुल-वधु का
होने दिया तिरस्कार
है ऐसे पुरुष पर धिक्कार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार .
.लड़कियाँ होती नहीं लाचार
चीख रहा बदनाम गलियों का शोर ..
जाने कब ख़त्म होगा इस कलयुग दौर .
अधर्मी बन सच्चाई से तुम भाग रहे
बेटियों को कोख में मार रहे
लड़कियाँ होती नहीं लाचार .
.लड़कियाँ होती नहीं लाचार
चीख रहा बदनाम गलियों का शोर ..
जाने कब ख़त्म होगा इस कलयुग दौर .
अधर्मी बन सच्चाई से तुम भाग रहे
बेटियों को कोख में मार रहे
माँ कि ममता ..पिता का प्यार
कहो क्यूं हो गया लाचार
लडकिया होती नहीं लाचार ..
लडकिया होती नहीं लाचार
तुम एंह्कारी...झुक नहीं सकते ..
खोकले वसूलो से मुड़ नहीं सकते
भूल के अपने वजूद के कीमत
वो खुद को करती तुम्हे उपहार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार ..
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
ना चाँद,ना शोला,ना शबनम
न फूलो का हार . .
तू एक समन्दर खारा
वो पावन गंगा की धार
लड़कियाँ होती नहीं लाचार ..
लड़कियाँ होती नहीं लाचार ..
लड़कियाँ होती नहीं लाचार
4/12/2010
Vandana singh..
haan bilkul sahi..
ReplyDeletekaun kahta hai ladkiyaan laachaar hain....
लडकिया होती नहीं लाचार
aaj kal to ladkiyon ne ladkon ke naak me dam kar rakha hai...
hahaha......
anywayz...
itni achhi rachna k liye badhai....
regards..
shekhar
@ sanjay ji .......bahut bahut shukriya
ReplyDeletesekhar ji ....ye dr kumar vishwas ke ek geet ka repply hai agar aapne geet nahi suna hai to suniyega thanks:)
ReplyDeletenywys bahut bahut shukriya
suman meet ji ....shukriya :)
ReplyDeleteare waah ..vandna..khub mehnat hui lagta hai is kavita ke peeche....bahut bahut gehri soch hai kai jagah ..... haan....flow kaheen kaheen gadbadya hai ......par pahle se kafi behtar hai ... flow pe pakad badh rahi haiu tumhari
ReplyDeleteहम आपकी बात से पूरी तरह सहमत हैं!
ReplyDelete--
रंग-रँगीला जोकर
माँग नहीं सकता न, प्यारे-प्यारे, मस्त नज़ारे!
--
संपादक : सरस पायस
Waah kitni sateek baat likhi hai aapne
ReplyDeletepadh kar bahut sakun mila
ladkiyan nahi laachaar
good yaar...jo ladkiyon ko lachaar kahe ...ham to aisi soch ko hi lachaar kahte hain...Dr.vishwas ki poetry bhi likhti to kuch baat banti :-)
ReplyDeleteARE WAH AAP KE PAAS TO JABARDAST CONTENT HAI...
ReplyDeleteBAS MANCH MIL JAYE TO BAAT BAN JAYE:-)