Wednesday, March 3, 2010

त्रिवेणी


बिखरती साँसे ,छटपटाती रूह,इज्तराब ए रफ़्तार में बेइख्तियार दोड़ती धड़कने ..


तेरे तसव्वुर को सुलझाने में........हम खुद से उलझ बैठे है,,


शायद आज फिर एक गिरह नज्म बनके कागज पर उगेगी.

5 comments:

  1. तेरे तसव्वुर को सुलझाने में........हम खुद से उलझ बैठे है,\वाह बहुत खूब। शुभकामनायें और कागज़ पर क्या उतरेगा इस का इन्तज़ार रहेगा।

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  2. तेरे तसव्वुर को सुलझाने में........हम खुद से उलझ बैठे है,
    शायद आज फिर एक गिरह नज्म बनके कागज पर उगेगी.

    bahut khoob

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  3. too good....
    http://fervent-thoughts.blogspot.com

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