Thursday, December 3, 2009

गजल

ये धुआं है सुलगती अंगीठी का जो आंखे मेरी कडवी हो गई ...
जब अंगार धह्केंगे ...तो माँ तवा चढाएगी ....

मुल्क में उठते धुंए से आज में कितना डर गयी ....
सुलगती लाशो के ढेर पर सियासत ...जाने क्या पकाएगी

पड़ोसन दहशत के डर से सांकल लगाये बैठी है
जाने किस भेश में हैवानियत चली आएगी ....

वो शरहदों पार जो घरो में अपने बारूद बो रहा है
घर कि ओरते कब तक चिराग डर डर के जलाएँगी ...


अपनी ही किसी चिंगारी से एक दिन राख हो जायेगा
मगर इंसानियत के मूह से ये कालिख ना जाएगी...


मेरी माँ जाने किस दर्द में अकेले बैठी रो रही है

मैं कैसे जाऊं ...मुझे देखकर रो भी ना पायेगी ....

मैं लाख पूछूंगी ...वो भीगे लबो से मुस्कुरा ही देगी
मैं सबब पूछूंगी लाल आँखों का ...वो तिनका बताएगी ....

रहने दे सखी... ना पूछ हमसे एहसास ए मोहब्बत
ये दिल कि मूक बेबसी ..कभी लबो पे आ ना पाएगी ....

किसी पिंजरे के पंछी को कभी आसमां मत दिखाना
नाजुक पंखो से सलाखे तोड़ने कि जिद में..अभिलाषाएं उसे तोड़ जाएँगी ....

12-3- 2009
-वंदना

18 comments:

  1. रहने दे सखी... ना पूछ हमसे एहसास ए मोहब्बत
    ये दिल कि मूक बेबसी ..कभी लबो पे आ ना पाएगी ....

    bahut sunder vandana ji, ek khubsurat abhivyakti ka ahsaas.

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  2. मैं लाख पूछूंगी ...वो भीगे लबो से मुस्कुरा ही देगी
    मैं सबब पूछूंगी लाल आँखों का ...वो तिनका बताएगी ....
    sabhi bahut-2 achche hai .....kaise likh leti hai.....tumahra writing pattern bahut bhata hai hamko

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  3. @ yagesh ji ....thanku soomuch sir ji

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  4. @ priya ....thanks a lot dear ...mujhe tumhara pettern bhata hai or tumhe mera ....jankar bahut khushi hui hehehe ...

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  5. Bahut hi khoobsurat ghazal likhi hai vandana tumne. end tak pahunch te pahunch te badan mein jhur jhuri si ho gayi thee. :)

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  6. वो शरहदों पार जो घरो में अपने बारूद बो रहा है
    घर कि ओरते कब तक चिराग डर डर के जलाएँगी ...

    हर शेर यथार्थ से भरा .......... जीवन की सच्चाई का दर्पण है ......... बेमिसाल लिखा है ........

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  7. har sher shandaar.. ye to kuch jyada hi ho gaya..
    मैं लाख पूछूंगी ...वो भीगे लबो से मुस्कुरा ही देगी
    मैं सबब पूछूंगी लाल आँखों का ...वो तिनका बताएगी ....

    han, kuch typing/ transliteration errors hain..

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  8. so nice... bahut khub .... clap for u...

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  9. "किसी पिंजरे के पंछी को कभी आसमां मत दिखाना
    नाजुक पंखो से सलाखे तोड़ने कि जिद में..अभिलाषाएं उसे तोड़ जाएँगी ...."
    amazing lines !!!

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  10. bahut khoob bahut practical baatein likhi aapne

    aur mere blog par aane ke liye dhanyawaad

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  11. वंदना
    सबसे पहले अपने ब्लॉग पार स्वीकृति प्राप्त कमेंट्स के ही दिखाई देने की व्यवस्था शुरू करो ताकि ये बेहूदा कमेंट्स दिखाई न दें

    दूसरी बात
    तुम्हारे ख्याल बहुत अच्छे हैं 'लेकिन इन्हें ग़ज़ल की शास्त्रीय शक्ल में लाने के लिए सर्वत एम् साहब या नीरज जी या ऐसे ही किसी उदार जानकर से मार्गदर्शन लें ,माँ को लेकर लिखे गए भाव अद्भुत हैं बधाई
    मैंने पहले भी तुम्हे कहा है कि तुम्हारे अन्दर अच्छे रचनाकार की सम्भावना उपस्थित है किन्तु हीरे को तराशा नजाए तो वह किसी मुकुट की मणी बनने से तब तक वंचित ही रहेगा
    सतत लेखन के लिए बधाई

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  12. किसी पिंजरे के पंछी को कभी आसमां मत दिखाना
    नाजुक पंखो से सलाखे तोड़ने कि जिद में..अभिलाषाएं उसे तोड़ जाएँगी
    -waah! bahut achhce bhaav hain.

    achcha likhti hain aap.

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  13. @ gurdu ji ...bahut bahut shukriya sir ..apke is margdarhan k liye ...main koshis karoongi apki aashao par khari utar sakoon ...

    thanks a lot for coming ...:)

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  14. पिंजरे के परिंदे को शायद निवालों का लिहाज रहा
    वरना दर ए तकदीर खुला देख उड़ना भला किसे नहीं आता

    यकीनन ,कलयुग कि करतूतों से भगवान् भी डरे बैठे है
    वरना यहाँ पत्थर पर राम लिखना भला किसे नहीं आ

    behad khoobsoorat khayalat hain...observation ko shabdon mein bade kareene se piroya hai...padhkar dil khush ho gaya

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  15. इस सुन्दर रचना के लिए
    बहुत बहुत आभार

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...