Sunday, September 20, 2009

पुरानी कविता

लिखना मेरा शोक कम ,मजबूरी (जूनून ) ज्यादा है

लिखना मेरा शोक कम , मजबूरी ज्यादा है ..
जो हर काम के आड़े जाती है .......

मैं अलमारी से किताब निकालती हूँ ,
हाथ मैं डायरी जाती है .......

जब अपनी रची कविताओ को
पढ़ती हूँ तो सकून मिलता है ,
तखलीफ़ तब होती जब
क्लास के रिजुल्ट में ग्रेड 'C' जाती है ....

खिड़की पर बैठ कर जब उड़ते हुए पंछियों से
बातें करती हूँ तो अच्छा लगता है ,
बुरा तब लग जाता है जब
'बावली ' कहकर माँ बहार से आवाज लगाती है ......

जब अकेली तनहा रातो
में
चाँद से बाते करती हूँ तो अच्छा लगता है
गुस्सा तब जाता है जब कम्बक्त घटा छा जाती है .....

जब आईने के सामने खड़े होकर मुस्कुराती हूँ तो अच्छा लगता है
तखलीफ़ तब होती है जब अचानक
दिल सिसकने लगता है और आंखे भर आती है ....

जिसे वर्षो से नही देखा मैंने
उसकी यांदो में जीना अच्छा लगता है
वो
दस्तूरों से आजाद बचपन ,
वो बेशर्तीय दोस्ती याद जाती है .....

जी करता है उससे मिलूँ तो चिपट कर रोऊं मैं ,
मगर ये ख्याल दिल की चोखट से ही वापस लोट जाता है >
जब ज़माने की याद जाती है ..............***

8 comments:

  1. वाह वन्दना

    मैंने पहले ही कहा था
    तुम हो एक कवी हृदय
    शायराना दिल
    और
    इस वावलेपन का कहना ही क्या
    यही तो तुम्हारी कविता का
    पहला अभिनन्दन है

    जब अपनी रची कविताओ को
    पढ़ती हूँ तो सकून मिलता है ,
    तखलीफ़ तब होती जब
    क्लास के रिजुल्ट में ग्रेड 'C' आ जाती है ....

    खिड़की पर बैठ कर जब उड़ते हुए पंछियों से
    बातें करती हूँ तो अच्छा लगता है ,
    बुरा तब लग जाता है जब
    'बावली ' कहकर माँ बहार से आवाज लगाती है ......

    जब अकेली तनहा रातो में
    चाँद से बाते करती हूँ तो अच्छा लगता है
    गुस्सा तब आ जाता है जब कम्बक्त घटा छा जाती है .....

    बधाई

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  2. wow vandana! tumhara blog ab jyada achcha lag raha hai...ye poetry to community mein padhi thi hamne....aur sach mein achchi hai

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  3. thans gafil ji nd priya thaks soo much 4 ur ur comment

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  4. मुझे आस्चर्य है की आप की कविता मैंने पहले क्यों नहीं पड़ी ये कविता तो लोगो के जन पे होना चाहिए .मुझे लगता है आप ने सायद लोगो तक नहीं पहुचाई ये तो सारा सर नैन्सफी है कृपया आप इसे लोगो के बिच लाये या ये जिम्मा मुझे डिजिया

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  5. thanks for ur comliment sharvesh ji ...
    shujhav k liye bahut bahut shukriya

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  6. मैं अलमारी से किताब निकालती हूँ ,
    हाथ मैं डायरी आ जाती है .......

    sahi kah rahi hain aap..
    main bhi laptop on karta hun padhne ke liye aur blogger khol kar baith jaata hun... :P

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  7. u write too gud vandana....i m feeling gr8 to read ur stuff :)

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  8. hmmmm Just 20 and so gud ..........

    जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
    भावना की गोद से उतर कर
    जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
    चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
    रूठना मचलना सीखें।
    हँसें
    मुस्कुराऐं
    गाऐं।
    हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
    उँगली जलायें।
    अपने पाँव पर खड़े हों।
    जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

    www.rashtrakavi.blogspot.com
    www.classicshayari.blogspot.com

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...