Wednesday, July 1, 2009

बूंदों की एक शाम


"बोली बोली रे कोयलिया ..कूक रहे मौर
मचल मचल कर चली हवाएं.. छायीं घटा घनघोर
जी चाहे नाचूं दिल खोल के सब बंधन दूँ मैं तोड़
अब टूटे चाहे पैजनिया...चाहे करे घूँघरू शोर "




बूंदों की एक शाम





जैसे
शबनम से भीगा शमां..
पैमाने की अदाओं में ढल रहा था ,

कभी मचलते हुए कभी थिरकते हुए ..
मेरे आँगन में आज सावन बरस रहा था ,

मानो खुदा की इबादत के रूप में ..
सच्चे मोतियों का हार टूटकर मेरी खिड़की पर बिखर रहा था

जिसकी तपिश मेरी रूह को शेक रही थी...
कुछ ऐसा मेरी साँसों में जल रहा था ,

नाच उठे हवा के झोकें बूंदों की ताल पर ..
दिल मेरा भी पायल के घूँघरू की तरह छनक रहा था

कभी मचलते हुए कभी थिरकते हुए ..
मेरे आँगन में आज सावन बरस रहा था ,"

6 comments:

  1. सच्चे मोतियों का हार टूटकर मेरी खिड़की पर बिखर रहा था ...is line ko chhota kijiye,doesnt go in nicely wid rest of d poem

    vaise ye compositions bahut hi zyaada achhe hai...brilliant is the word...keep writing

    long time u visited my blog...koi naarazgee??

    ReplyDelete
  2. sajal ji baahut shukriya coment n compliment dono k liye ...but i think..lin badi ho ya choti bhav to spast hi hai ..or main kavita k baare me itna hi janti hoon ... thanks to tell

    ji main apke blag par aati rehti hoon par is baar kuch der ho gayee hai bcoz of tim .. i,ll visit soon ...thanks

    ReplyDelete
  3. कभी मचलते हुए कभी थिरकते हुए ..
    मेरे आँगन में आज सावन बरस रहा था ,

    मानो खुदा की इबादत के रूप में ..
    सच्चे मोतियों का हार टूटकर मेरी खिड़की पर बिखर रहा था......jis tarah ka description kiya hain vandana barish ka sachchi bahut pyara laga hamahe to .....

    ReplyDelete
  4. बहुत ही मौलिक प्रतीक प्रयोग हुआ है इन पंक्तियों में
    बधाई


    दिल मेरा भी पायल के घूँघरू की तरह छनक रहा था
    सच्चे मोतियों का हार टूटकर मेरी खिड़की पर बिखर रहा था

    यह भी बहुत अच्छा है

    कभी मचलते हुए कभी थिरकते हुए ..
    मेरे आँगन में आज सावन बरस रहा था

    ReplyDelete
  5. Waaaah.....bahut hi badhiya time par kavita padhi hai maine...abhi delhi mein baarish ho rahi hai aur aapki sundar kavita ka anand le raha hun.

    ReplyDelete
  6. "नाच उठे हवा के झोकें बूंदों की ताल पर,
    दिल मेरा भी पायल के घूँघरू की तरह छनक रहा था"
    रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...