मुझे इस गुनाह का तुम ये इनाम दे दो
मुझे हर सजा कबूल है बस इलज़ाम दे दो ..
पता नहीं ये कौन सी बेबसी है दिल की
इस आवारगी को अब जो चाहे नाम दे दो ..
इक खुदगर्जी कहीं मुझमें करती है इल्तजा
मुझे मेरे वही पुराने तुम सुबह शाम दे दो
लम्हा -लम्हा जिंदगी कह रही है मुझसे
गुमराहियों को तुम भी अब अंजाम दे दो
मेरी जिंदगी कि वो अनमोल सी सौगातें
सब लाद ले चले हो ,कुछ तो दाम दे दो
दुनिया में प्रीत की तुम रखलो लाज मोहन
एक मीरा को उसका घन श्याम दे दो
वक्त लौटा नहीं सकता गुज़रा हुआ बचपन
वो खट्टे मीठे जामुन वो कच्चे आम दे दो
बख्शी है खुदा ने नियमत ए परवाज़ तुम्हे
इस सफ़र को 'वंदना' तुम एक मुकाम दे दो
- वन्दना
28th April 2011
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (30.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत ही सुन्दर गज़ल्।
ReplyDeleteक्या यार गज़ब हो तुम भी ....कोई मनुफैक्चुरिंग यूनिट अन्दर लगा रखी है क्या.....प्रोडक्शन गज़ब का जा रहा है....और तस्वीर तुम्हारी क्यों नहीं ...या फिर ऋचा जी से गवाने का चक्कर है ....मामला क्या है साफ़ किया जाए :-)
ReplyDeletekya baat hai ,najm jo sidha samvad karti huyi gaharayiyon men utarati huyi . bahut mohak ,mahak bikherati huyi ji .
ReplyDeleteshukriya ji
बहुत सुन्दर गजल है मैने आप के सभी ब्लांग पढ़े बहुत सुन्दर है। मेरे ब्लांग में भी आप आये तो मुझे खुशी होगी धन्यवाद…
ReplyDeleteKya gazab ke sher likhe hain .... lajawaab gazal ...
ReplyDeleteकच्चे पक्के जामुन और कच्चे आम की तरह इस ग़ज़ल के लुत्फ़ का क्या कहना...दाद कबूल अक्रें
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूबसूरत अशआर हैं सभी ! किसी एक की तारीफ़ दूसरे के साथ नाइंसाफी होगी ! लेकिन इसका जवाब नहीं है !
ReplyDeleteइक खुदगर्जी कहीं मुझमें करती है इल्तजा
मुझे मेरे वही पुराने तुम सुबह शाम दे दो !
बधाई क़ुबूल करें !
इस आवारगी को अब कोई नाम दे दो ...
ReplyDeleteमेरी वही पहली सी सुबह शाम दे दो ...
खूबसूरत इल्तिजा अशआरों में !
वक़्त लौटा नहीं सकता गुज़रा हुआ बचपन।
ReplyDeleteसही है। बहुत बधाई ।
॥ सुलभसौख्यं इदानीं बालत्वं भवति ॥
बचपन में सुख सुलभ होता है..!!
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
'वक्त लौटा नहीं सकता गुजरा हुआ बचपन
ReplyDeleteवो खट्टे मीठे जामुन वो खट्टे आम दे दो '
......................वाह ! बहुत जानदार शेर
....................उम्दा ग़ज़ल
क्या बात है वंदना जी
ReplyDeleteकसम से अश्क बह निकले
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
ReplyDeletehar sher bahut vazni hai. bahut umda gazal.
ReplyDeleteu are really fabulous... :)
ReplyDelete@ mousumi ...thankss for compliment dear :)
ReplyDeleteDil ki is aavargi ko ab jo chahe naam de do
ReplyDeleteVandna ji sach maniye Mohabbat ke aakhri ahasas ko spars kar gai aapki rachana
bahut khoob
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