Tuesday, April 19, 2011

क्या तुझको मेरे यार कहूँ ?



पहला पहला प्यार कहूँ ,या 
जीवन कि पहली  हार कहूँ 
जाने   क्यूं   ये सोच रही हूँ ,
क्या तुझको  मेरे यार कहूँ ?

जिंदगी में ये मेले नहीं थे 
मगर हम इतने अकेले नहीं थे 
यूँ भीड़ में तन्हा होते नहीं थे 
छुप छुप कर यूँ रोते  नहीं थे 

कुछ पल कि वो नींद थी 
छण भर का वो सपना था 
भावों का तोल मोल न था 
कोई बेवजह ही अपना था 

कुछ पल के उस मोहजाल को 
कैसे प्रीत का आधार कहूँ ?

पहला पहला प्यार कहूँ ,या 
जीवन कि पहली हार कहूँ 
जाने क्यूं ये सोच रही हूँ ,
क्या तुझको   मेरे यार कहूँ ?

ऐसी दुआं नही मांगी थी 
बंजर आकाश नहीं चाहे थे, 
जो शीशा बनकर बिखर जाएँ 
कभी ऐसे ख़्वाब नहीं चाहे थे 

अपना सफ़र अपनी  रवानी 
हमको खुद पर बहुत गुरूर था ,
बनकर पीर बसे कोई मन में
ये तो कभी नहीं  मंजूर था 

गूँजता हैं एक शोर हर तरफ 
मुझपर हंस रही है जिंदगी 
कैसे कबूल करूँ सच अपना 
कैसे खुद को एक लाचार कहूँ ?

पहला पहला प्यार कहूँ ,या 
जीवन कि पहली हार कहूँ 
जाने क्यूं ये सोच रही हूँ ,
क्या तुझको   मेरे यार कहूँ ?

जीवन कि कच्ची सड़क पर 
माना मोड़ सब आते जाते हैं 
बस जिंदगी चलती रहती है 
हम क्यूं कहीं   रह जाते हैं !

हो गये मूँह के बोल भी महंगे 
क्यूं खुद पर न जोर हुआ 
दोस्ती सा वो पावन रिश्ता 
क्यूं इतना कमजोर हुआ !


हमने जज्बात नहीं तोले 
कभी लब अपने नहीं खोले 
तुमने मुख  यूँ मोड लिया 
हर ताल्लुक हमसे तोड़ लिया 

अपनी पाक भावनाओं का 
दोस्त ,कैसे ना त्रिस्कार कहूँ ?

पहला पहला प्यार कहूँ ,या 
जीवन कि पहली हार कहूँ 
जाने क्यूं ये सोच रही हूँ ,
क्या तुझको   मेरे यार कहूँ  ?




-वन्दना  


8 comments:

  1. भावों को बखूबी संजोया है।

    ReplyDelete
  2. मन में उठते भावों को सहजता से समेटा है ....

    ReplyDelete
  3. manohari prastuti ke liye abhar , sunder sanyamit
    kavy . badhayiyan .

    ReplyDelete
  4. गहन भावों का संयोजन

    ReplyDelete
  5. उफफफफफ्फ़ लड़की क्या करती रहती है...आजकल हमसे कुछ भी एक्सप्रेस ही नही हो पा रहा है| तुम्हारे अंदर एक कवि की आत्मा कूट-कूट कर भरी है मेरे दोस्त डीपी की एक कविता याद आ गई..अब लिखे की ज़्यादा तारीफ तो ना हो होगी हमसे...जुटी रहो बच्चा :-)

    ReplyDelete
  6. dil ke dard ko bayan karne ke liye is se acchhe aur koi shabdo ka chunaav shayad vo vastvikta na laa pata.

    bahut dard bhari lekin acchhi rachna.

    ReplyDelete
  7. bas aisa laga ki apni story padh rahi hun...can so much relate to this....loved the chorus :)

    ReplyDelete
  8. Thankss a lotttt to all of u :)

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...