Thursday, April 14, 2011

ग़ज़ल










मेरी साँसों में बसो  मीठी सी हवा होकर  
देखो अंधेरो के वास्ते कोई  शुआ होकर 

होके संजीदा ढूँढती है आवारगी मेरी 
खो गया गगन में कोई परिंदा होकर 

हर मोड़ पे रुक रुक के देखा किया हमने 
जैसे कि चला हो कोई साथ  साया होकर  

बेनाम सी सदाओं ने आजमाया बेसबब 
तुम  भरम तोड़ चले झूठी जफा होकर 

हमको हर गुनाह कि सजा मंजूर हुई 
खुश रहेंगे  हम भी तुमसे जुदा होकर 

रोशन थी चिरागों कि तरह आँखों में मेरी 
आज उड़ गयी वो इबादत भी  धुंआ होकर 






vandana 





6 comments:

  1. samudra aur gazal... tasweer is gazal ke saath ji uthi

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  2. badi khoobsoorati se apni bat kah di hai ...

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  3. बहुत सुन्दर ख्याल्।

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  4. होके संजीदा ढूंढती है, आवारगी मेरी

    खो गया गगन में , कोई परिंदा होकर

    ..........................................................

    खूबसूरत शेर .....उम्दा अभिव्यक्ति

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  5. गजल बहुत सुन्दर है .कभी आप मेरे ब्लांग में भी आए मेरा हौसला बढे़गा धन्यवाद.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...