Thursday, July 15, 2010


इस चाँद से ये कह दो ज्यादा ना मुस्कुराये
ओकात में रहे ........दिल मेरा ना जलाये ..

मालूम है हकीकते बज्म ऐ आसमां कि ..
भीड़ में अकेला ,कब कोई तारा टूट जाये ..

पल पल पिघलती है रात अंधेर कि लो में ..
जुगनूं है कश्मकश में ..कैसे रौशनी बचाए

आसमां कि चादर पर बिखरा जो पड़ा है
ये मोतियों का खजाना उफक लाद ले जाए..

हर रोज एक कटारी चलती हैं चाँद पर
नम आँखों से चांदनी भला कैसे मुस्कुराये..



11 comments:

  1. वन्दना लाजवाब---
    पल पल पिघलती है रात अंधेर कि लो में ..
    जुगनूं है कश्मकश में ..कैसे रौशनी बचाए

    आसमां कि चादर पर बिखरा जो पड़ा है
    ये मोतियों का खजाना उफक लाद ले जाए..
    दिल को छू गयी ये पाँक्तियाँ। शुभकामनायें

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  2. हर रोज एक कटारी चलती हैं चाँद पर
    नम आँखों से चांदनी भला कैसे मुस्कुराये..
    ' सच कहा जब चांदनी की ही आंखे नम हो तो ..."
    regards

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  3. aapka about me- संगत कवियों की मिल गयी मुझे... मानो झूठ की इस जागीर में.. सच्चाई के नजराने मिल गए.. मेरी गुमनाम राहों को सफ़र सुहाने मिल गए.. खुद को कवि कहूं ,इतनी तो ओकात नहीं मेरी.. बस खुद से बतियाने के मुझे अब बहाने मिल गए...:)
    bahut pasand aya.


    मालूम है हकीकते बज्म ऐ आसमां कि ..
    भीड़ में अकेला ,कब कोई तारा टूट जाये ..

    पल पल पिघलती है रात अंधेर कि लो में ..
    जुगनूं है कश्मकश में ..कैसे रौशनी बचाए
    bahut sunadr panktiya.

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  4. nirmala ji ..bahut bahut shukriya :)

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  5. seema ji ..thanks a lott :)

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  6. vivek ..bahut bahut shukriyaa yahan tak aane k liye :)

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  7. इस चाँद से ये कह दो ज्यादा ना मुस्कुराये
    ओकात में रहे ........दिल मेरा ना जलाये

    -बहुत सही!!

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  8. हर रोज एक कटारी चलती हैं चाँद पर
    नम आँखों से चांदनी भला कैसे मुस्कुराये..

    beautiful lines...you are a true poet!

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  9. udan tashtri.... thnks a lott

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  10. saumya ..thanks a lott soumya for the compliment :)

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  11. bahut hi sunder ... lajawab ...par ओकात में रहे ........दिल मेरा ना जलाये .. yaha par itna gussa kyo :O

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...