जो जहर बनकर मेरी रगों में बहता है ,
जो जख्म बनकर मेरे सीने में रहता है ,
जो खून बनकर मेरी आँखों से बहता है ,
जो तेजाब की बूंदों सा मेरे माथे से टपकता है .....
वो हर रोज ..सोने से पहले..
और उठने क बाद ,मुझसे कहता है ...
"मैं नियति का दिया हुआ वो अभिशाप हूँ तुझे ,
जिसे ये जमाना गरीबी कहता है ...
जो खून बनकर मेरी आँखों से बहता है ,
जो तेजाब की बूंदों सा मेरे माथे से टपकता है .....
वो हर रोज ..सोने से पहले..
और उठने क बाद ,मुझसे कहता है ...
"मैं नियति का दिया हुआ वो अभिशाप हूँ तुझे ,
जिसे ये जमाना गरीबी कहता है ...
garibi ke upar bahut hi sunder abhivyakti ke liye badhaai.
ReplyDeleteवो हर रोज ..सोने से पहले..
ReplyDeleteऔर उठने क बाद ,मुझसे कहता है ...
"मैं नियति का दिया हुआ वो अभिशाप हूँ तुझे ,
जिसे ये जमाना गरीबी कहता है ...
sundar rachna..
samjha ye touching laga "Abhishaap"
ReplyDeleteuffff.....shabd nahin hain is k baare mein kuch bhi kehne k liye.
ReplyDeletebahut khub vandna ji... khub..
ReplyDeleteवंदना
ReplyDeleteसचमुच गरीबी से बढ़ कर अभिशाप कोई दूसरा नहीं
तुम्हरी संवेदना और दूर दृष्टी
बड़ी सम्भावनाये जगाती है
बधाई
Baba re...Vandna Ji...kitne seedhe shabdon mein kitni saral bhasha mein lagbhag sab kuchh kah diya aapne..! :)
ReplyDeleteMind blowing....ex-hilarating....excellence in world selection..dats wat makes ur dis poem so realistic n easy to understand ! :)
Jawab nahi....m spell-bound almost !
thanks sashi ji ...bahut bahut shukriya blog par aane k liye...:)
ReplyDeletenice
ReplyDelete