इस बेगाने देश में हर चीज परायी लगती है
मिलते है लोग अपने से मगर मुलाक़ात परायी लगती है
यहाँ सूरज की लालीमा वैसी ही है मगर भौर परायी लगती है
चाँद तो अपना सा है मगर रात परायी लगती है
यहाँ के सपने तो मेरे अपने है मगर पहचान पराई लगती है
तन्हाई तो मेरी अपनी है मगर हर महफिल परायी लगती है
बहुत कुछ खो दिया है (अपने बुजुर्ग अपना देश )कुछ पाने की तमन्ना में
ये पीड तो मेरी अपनी है ..मगर प्रीत परायी लगती है
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Thursday, May 14, 2009
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
YE JEEVAN BESHAK APNAA HAI,
ReplyDeletePAR REET PARAAIE LAGTI HAI.
JAANE KAISAA JEEVAN JISKI ,
HAR BAAT PARAAIE LAGTI HAI.
HAM MERA MERA KARTE HAIN ,
HAR CHEEZ PARAAIE LAGTI HAI.
SAHI LIKHAA HAI ! ZINDAGI MAIN AKSAR LAGTAA HAI KI YAHAAN APNAA TO BAHUT KAM HAI
MAN KE AHSAASON KO SHABD DENE KE LIYE BADHAAIE
To phir aa jao wapas... yaha bhi to sabhi apne hain.
ReplyDeleteAchchi lagi humko... man se likha hain
Bichadhne ka dard liye hue nazm dil bhigo gayi.
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