Thursday, August 20, 2009

अंदाज ऐ शायरी



1
मेरी आँखों में ये नमी नहीं..किसी के एहसासों कि कहानी है
मैं जिस सागर में डूबकी लगाकर आयी हूँ ये उसकी निशानी है
आईना भी हँसता है मेरी बेबसी पे आजकल ..कहता है,
कब तक ये कैद दरिया लिए नजरे झुकी रहेंगी....
एक रोज तो तुम्हे ये पलके उठानी है ....
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2
दिल से ये अजनबी से एहसास नही जाते
कुछ याद नही रहता ,कुछ हम भूल नही पाते
प्रीत की इस बेखुदी को करुँ मैं बयाँ कैसे
मुझे वो अल्फाज नही आते ...
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3
दिल मेरे तू क्यूं आँहे भरता है
क्यूं इस ज़माने से तू गिले करता है
खता की है तूने कसूरवार है तू
जो मोहब्बत किसी से तू करता है

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4
माना की तेरी याद बड़ी दूर से चलकर आती है
मगर सुनना कभी वो सदाएँ ,जो मेरे दिल से आती है
जब जाँ निकल जाती है तेरे ख्याल से ..और लोट कर नही आती है

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5
हमारी उल्फतो से टकराओ के चूर हो जाओगे
करीब सकोगे हमारे और ख़ुद से दूर हो जाओगे

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6
इधर ये बेबसी अपनी उधर उसकी वो तन्हाई
ये बेरुखी तेरी खुदा , हमें रास आयी

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7
रोता देख कर मुझको जो तुम यूँ मुस्कुरा देते हो
रोते हो तो क्यूं अपना मुहँ छुपा लेते हो
ये झूठी रुसवाई हमें एक दिन मार डालेगी
क्या मोहब्बत इतना बड़ा गुनाह है ?
जिसकी ख़ुद को तुम इतनी बड़ी सजा देते हो

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8
चुभते है इस दिल में कुछ दर्द नासूर बनकर
जब भी लगाया है कोई मरहम घावो पर अपने
उसने किरोदा है मेरे जख्मो को नमक बनकर

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9
जिन्दगी अब किसी की उधारी सी हो गयी है
धड़कने इस दिल पर लाचारी सी हो गयीं है
कुछ खोकर कुछ पाने की चाह में
फिदरत अपनी अब जुआरी सी हो गयी है

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Monday, August 17, 2009

बारिश की पहली बूँद


बादल की हस्ती को
अपना अस्तित्व बताती हुई
अपना वजूद खोने का
एक डर छुपाती हुई

अपनी एक तरन्नुम से परिंदों को
राग ऐ अंदाज सिखाती हुई
हवाओं की प्यासी अधरों से
अपनी नमी बचाती हुई

बारिश की पहली बूँद जब जमीन पर आती है

हो जाना है उसको दफ़न ...फ़िर भी
न जाने क्यूं इतना इतराती है
अपनी शोहरत के नशे में चूर वो कहती जाती है ..

मैं बारिश की पहली बूँद हूँ
माना के मुझे दफ़न हो जाना है
धरती की प्यासी गोद में मेरा वजूद खो जाना है


मगर हस्ती तो मेरी यूँ ही मिट नही सकती
धरती से वजूद अपना .. वापस चुराकर
मुझे तो भाप बनकर उड़ जाना है

कभी ढलती शाम में पत्तियों पर
अपनी नमी को छिटकाना है
कभी भौंर की इठलाती कलियों पर
शबनम बनकर ठहर जाना है

ये शोहरत भी अति प्यारी है मुझे
मगर मेरा कहाँ कोई एक ठोर ठिकाना है
मैं ही एक रोज बादल बनूंगी
मुझे ही एक रोज फ़िर सावन हो जाना है

कभी फ़िर से बारिश की
पहली बूँद की तरेह दफ़न हो जाना है
या फ़िर आखिरी बूँद की तरेह किसी
दरिया या सागर में ठहर जाना है

मैं जानती हूँ तो बस इतना ..कि

हर
बार मिट मिट कर भी मुझे आबाद हो जाना है
यही मेरी कहानी है यही मेरा सच्चा फ़साना है




तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...