गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

-
खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
-
बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
-
बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
वाह!
ReplyDeleteपुरवा अदब सीख ले तो पुरवा नहीं रह जाएगी ...
ReplyDeleteBeautiful!! :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... जवाब रश्मि जी ने दे दिया है :)
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत
ReplyDeleteवाह क्या खूब कहा है।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर त्रिनेणी!
बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियां सुन्दर भाव..
ReplyDeleteवाह ... त्रिवेणी का जादू चल गया ...
ReplyDeletewow....what a thought!!
ReplyDelete