नयन हँसें और दर्पण रोए
देख सखी वीराने में
पागलपन अब हार गया
खुद को कुछ समझाने में
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काली घटायें
घुट घुट जाएँ
खारे पानी
नयन समाएं।
मन में मुंडेर पे
बैठ परिंदा
विरह के नित
गीत सुनाए।
इसके हवा ने पंख कुतर लिए
ये टूटा नही... गिर जाने में
नयन हँसें और दर्पण रोये
देख सखी वीराने में
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कैसे है ये
रोग वे माए
रो -रो रतियाँ
नयन गंवाए।
जुड़के न टूटे
डोर ये मन की
साँसों विच कोई
अलक जगाये।
मन बैरागी ,भेद न समझे
जीने, और... मर जाने में।
नयन हँसें और दर्पण रोये
देख सखी वीराने में
पागलपन अब हार गया
खुद को कुछ समझाने में।