लाख चाह कर भी पुकारा जाता नही है
वो नाम अब लबों पर आता नही है
इसे खुदगर्जी कहें या बेबसी का नाम दें
चाहते हैं पर अना से हारा जाता नही है
दिल ख़्वाबों में भटकता एक बंजारा है
कि जिसके हिस्से में सबात आता नही है
छुप गया वो चाँद अब आसमाँ के पीछे
नूर ए अक्स मगर क्यूँ धुंधलाता नही है
मुक्कमल दी हैं हमने सजाएँ दिल को
कसूर मगर इसका समझ आता नही है
न तुम खफा रहो न किसी को रहने दो
जो चला जाता है दुबारा आता नही है
इस बात के एहसास और डर में मरते हैं
जिन्दा रहने का हुनर भी आता नही है !!
~~ वंदना