खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं,
रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं|
खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी
भीड़ में फैली इस तन्हाई से मगर डरते हैं|
लहरों से कहाँ होगी मालूम ये गहराई
डूबने का डर छोड़ो तो नदी में उतरते हैं|
अना,बेबशी, गुरूर, खुद्दारी ,इन सबके बीच
कितना मुश्किल है कहना कि तुझपे मरते हैं|
~ वंदना
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