गुम गये शायद
वो सिक्के इबादत के
दौडती जिंदगी ने जो
ठहरे पानी में फेंके थे !!
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खुद को भूल बैठे हैं
तुमको गवां बैठे हैं
एक दोस्त कि कमी
अक्सर खलेगी हमको
आवारगी के दिन
जब भी याद आयेंगे !!
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टूटे तो बहुत मगर
घुटनो पे नही आए
इश्क में सस्ते कोई
सौदे नही भाए
अपने भी हिस्से आयी है
इतनी बेगुनाही तो
~ वंदना