Tuesday, February 17, 2015

वो बेबाक सी लड़की


अक्सर जब उलझी हुई 
मैं सोचो में तुम्हारी 
खुद से खीज उठती हूँ 

जब खामोशियाँ मुझको 
गहराई का हवाला देकर 
पैदा करती हैं मुझमें 
डूब जाने का डर 

जब गले की रुदन 
मुट्ठी में कैद 
उँगलियों में उतर आती है  

तमाम ज़हमतों के बाद 
जब सुलझ ही नही पाते 
मेरी साँसों में 
अटके हुए मिसरे

जब चाहकर भी जुबाँ 
दिल का साथ नही देती 
जब मेरी आवाज़ 
चुप्पियों के लिबाज़ पहन 
दफ़न हो जाती हैं कहीं 

तो अक्सर याद आती है मुझे 
मुझमें  वो बेबाक सी लड़की !

 ~ वंदना  

Friday, February 6, 2015

नज़्म




ख़ामोशी 
जब्त के पहलू में 
जमा होता 
बेबशी का वह 
ढेर है जिसमें 
धीरे धीरे करके 
दब जाता है 
इंसान का वजूद 

और एक रोज़ जब 
दफ़न हो जाती हैं 
रूह की चीखें 
 तो उसी ढेर पर 
उग आते  हैं बबूल 

इश्क की ज़ात का 
गुलाब से बबूल होना ही 
जिंदगी के उस 
सफर की गवाही है 
जो फूल बनने की 
हसरत में 
कांटो ने तय किया है !





~ वंदना 


  



तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...