मैं सोचो में तुम्हारी
खुद से खीज उठती हूँ
जब खामोशियाँ मुझको
गहराई का हवाला देकर
पैदा करती हैं मुझमें
डूब जाने का डर
जब गले की रुदन
मुट्ठी में कैद
उँगलियों में उतर आती है
तमाम ज़हमतों के बाद
जब सुलझ ही नही पाते
मेरी साँसों में
अटके हुए मिसरे
जब चाहकर भी जुबाँ
दिल का साथ नही देती
जब मेरी आवाज़
चुप्पियों के लिबाज़ पहन
दफ़न हो जाती हैं कहीं
जब मेरी आवाज़
चुप्पियों के लिबाज़ पहन
दफ़न हो जाती हैं कहीं
तो अक्सर याद आती है मुझे
मुझमें वो बेबाक सी लड़की !
~ वंदना