Thursday, May 29, 2014




दिल रोया है 
उन अजीब लम्हों को याद करके ....

जब दिल के दरवाजे पर 
तेरी दस्तक से

सोयी ख्वाहिशे 
इस तरह 
तिलमिला कर जागी थी ....

मानों किसी ने 
ठहरे पानी में 
पत्थर फेंका था ,,

कोई दुआ करे
 के उन्हें फिर नींद आ जाये


शायद अब खुदा तक 
मेरी अर्जी नहीं जाती ...

Friday, May 2, 2014





न तुम इतने नादाँ थे 
न मैं इतनी समझदार 
की भर पाते 
हम
दिलों में खिंचती 
 उन लकीरों को 
कि जिन पर 
अहम की 
दीवार को 
बुनियाद मिल गई !


तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...