गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Sunday, October 2, 2011
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
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बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
bhaut hi sundar panktiya...
ReplyDeleteAti Sundar
ReplyDeleteआपकी कवितायें वैगरह मैं अक्सर फीड से पढता हूँ..सबसे अच्छी बात मुझे जो लगती है वो ये की कवितायें तो खूबसूरत होती ही हैं, आप तस्वीरें भी चुन के लगाती हैं,
ReplyDeleteखूबसूरती और बढ़ जाती है कवितायों की!!
bahut bahut shukriyaa aap sabhi ka ,....aabhaari hoon .:)
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