वो अक्सर कह देती थी
अपनी बातों में कुछ अनकहा भी
और मैं अनसुना करते हुए
सब सुन भी लेता था
मगर एक दिन मेरे हिस्से का शोर
मुझे सौंप कर
वो चुप हो गई
तब से उसकी चींखों का भी
मुझसे राब्ता हो गया है
वो उड़ेल देती थी शब्दों में खुद को पूरा पूरा
और मैं एक आधी अधूरी प्यास लिए
तृप्ति की परिभाषाएँ तय करता रहता था
उसकी मोहब्बत घुटनो के बल रेंगते हुए
घोट देती थी अक्सर गला मेरी अना का
और मैं बार- बार खुद में ही मर जाता था
मैं दर्ज़ हूँ ताबूत में बंद
किसी किताब में और
दुनिया की उड़ती खबरों में
अपना होना तलाश रहा हूँ
~ वंदना
७/१४/२०१६
अपनी बातों में कुछ अनकहा भी
और मैं अनसुना करते हुए
सब सुन भी लेता था
मगर एक दिन मेरे हिस्से का शोर
मुझे सौंप कर
वो चुप हो गई
तब से उसकी चींखों का भी
मुझसे राब्ता हो गया है
वो उड़ेल देती थी शब्दों में खुद को पूरा पूरा
और मैं एक आधी अधूरी प्यास लिए
तृप्ति की परिभाषाएँ तय करता रहता था
उसकी मोहब्बत घुटनो के बल रेंगते हुए
घोट देती थी अक्सर गला मेरी अना का
और मैं बार- बार खुद में ही मर जाता था
मैं दर्ज़ हूँ ताबूत में बंद
किसी किताब में और
दुनिया की उड़ती खबरों में
अपना होना तलाश रहा हूँ
~ वंदना
७/१४/२०१६
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2016) को "धरती पर हरियाली छाई" (चर्चा अंक-2405) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'