गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Monday, April 22, 2013
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

-
खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
-
बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
-
बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
बहुत भा्वपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteकई शोर गूंजते रहते हैं उम्र भर ... किसी मुकाम तक नहीं पहुँच पाते ... पी लीना चाहिए ऐसे शोर को ...
ReplyDeleteअर्थपूर्ण रचना ...
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
ReplyDelete