Sunday, March 18, 2012

मेरे हिस्से कि वो चंद बूंदे !



कुछ सदाएं यूंही भटकती 
मुझ तक जब आ जाती है 
बिन आहट बिन दस्तक जैसे 
कोई संदेसा दे जाती है  


कुछ कहने कुछ सुनने को जब 
 ख़ामोशी खुद रास्ता बन जाती है 
वही पुराने राग जब धड़कने 
बैचेनियों में गुनगुनाती है 


कमजोर  पलों कि इस शरगोशी को 
मैं थपकियों से बहलाती हूँ 
सुलझाती हूँ ये भ्रम जाल सुनहरे 
खुद को भी ये समझाती हूँ 


नहीं बरसती ..इन बरसातों में 
अब मेरे हिस्से कि वो चंद बूंदे !




- वंदना 



12 comments:

  1. दुःख की घड़ियाँ गिन रहे, घडी-घडी सरकाय ।
    धीरज हिम्मत बुद्धि से, जाएगा विसराय ।
    जाएगा विसराय, लगें फिर सर में गोते ।
    लो मन को बहलाय, धीर सज्जन न खोते ।
    समय का शाश्वत चक्र, घूम लाये दिन बढ़िया ।
    होना मत कमजोर, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ ।।

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  2. नहीं बरसाती इन बरसातों में अबमेरे हिस्से की चंद बूंदे...
    वाह

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  3. कभी तो बरसेंगी ही ..
    बढिया प्रसतुति !!

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  4. बहुत खुबसूरत भाव..

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  5. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    इस उत्कृष्ट रचना के लिए ... बधाई स्वीकारें.

    नीरज

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  6. नही बरसती अब इन बरसातों मैं मेरे हिस्से की कुछ चंद बुँदे...
    बहुत ही प्यारी भावो को संजोये रचना......

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  7. भावप्रवण प्रस्तुति ... उम्मीद रखिए ... कभी न कभी बरसेंगी

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  8. रची उत्कृष्ट |
    चर्चा मंच की दृष्ट --
    पलटो पृष्ट ||

    बुधवारीय चर्चामंच
    charchamanch.blogspot.com

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  9. कलात्मक रचना मनभावन व प्रभावशाली है बधाईयाँ जी /

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  10. बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  11. बहुत ही सुन्दर रचना....
    सुन्दर भाव अभिव्यक्ति :-)

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  12. बहुत ही सुन्दर रचना....
    सुन्दर भाव अभिव्यक्ति :-)

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