गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
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बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
आमीन ... ऐसा ही हो ..
ReplyDeleteमैं भी दुआ करती हूँ ये रंग कभी फीका ना हो....शुभकामनाओ सहित...
ReplyDeleteवाह! आमीन....
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर दुआ…………आपकी दुआ कबूल हो।
ReplyDeleteहम भी रंग गए आपके रंग में..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत दुआ और उतनी ही खूबसूरत ये तस्वीर है...
ReplyDeletekhoobsoorat ahsaas se bharee panktiyan
ReplyDeletebahut bahut shukriyaa aap sabhi ka ....is sneh ke liye aabhaari hoon :)
ReplyDeleteकरवाचौथ पर
ReplyDeleteअपने चाँद को हथेली पे सजाया है
मानो या ना मानो
चाँद, आपको देख लजाया है
खुशियों के रंग सारे
भर दिए हैं चाँद में आपने
छत
अँगुलियों की बनाकर
चाँद मुट्ठी में किया है आपने
वन्दना जी !
आपको हमारी शुभकामनाएं
पूरी हों आपकी मनोकामनाएं .
हाथ का फोटो इतना साफ़ है कि हाथ में विधि का लिखा साफ़ नज़र आ रहा है. मैंने पहले हाथ को पढ़ा फिर आपकी कविता को.......स्वस्थ्य शरीर और दृढ विचारों की मलिका हैं आप. ऊपरवाला मेहरबान है आप पर. बधाई हो.
ati sundar....
ReplyDeleteशुक्रिया आप सभी का :) कोशलेन्द्र जी रचना के साथ साथ हाथ पढ़ने के लिए भी धन्यवाद !! :-)
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