गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Monday, October 31, 2011
Thursday, October 27, 2011
सुन सखी ....
कुछ रिश्ते बेनाम होते हैं
कुछ रिश्तों के नाम होते हैं
बेनाम रिश्ते में कोई शर्त नहीं होती
सिर्फ प्रेम होता है
सिर्फ प्रेम होता है
वो क्यूं हैं .क्या हैं ..कब तक हैं
इन सवालों के लिए
वहाँ कोई जगह नही होती
और शायद न ही जवाब होते है
ये रिश्ता एक तरफ़ा हो या
दोनों तरफ़ा ..अपनी सीमाएं खुद
तय कर लेता है
इस रिश्ते का आकाश
सा फ़ैल जाना भी लाज़मी है
और वक्त कि हवा कि
ठिठुरन में सिकुड जाना भी
.........................
मगर एक रिश्ते का नाम होता है
वो रिश्ता जो समर्पण
विश्वास और प्यार के वजूद
का रिश्ता है ..जिसमे
न होते हुए भी
कुछ शर्ते हैं ..कुछ वादे
कुछ कसमे हैं
जो जिन्दगी कि बुनियाद
भी है और आकार भी ...
जिसका एक तरफ़ा होना
बैसाखी पर चलने जैसा है
जो बंधा हुआ है अपनी
महत्वकांक्षाओ में ...जिसे
वक्त के बदलते मौसम
सिर्फ फैलना सिखाते हैं
सुकड जाने कि इजाज़त
नही देते .!जिसका गौरव
घर के रहस्य कि तरह होता है
जो तभी तक गौरवान्वित है
जब अपने आप तक सीमित है
कोई अविश्वास कोई डर
शंकाओं के घेरे न बनाने पाए
यही इस रिश्ते कि गरिमा भी है
और सफलता भी
......................
- वंदना
10-27-2011
Tuesday, October 25, 2011
Sunday, October 23, 2011
Friday, October 21, 2011
Wednesday, October 19, 2011
Monday, October 17, 2011
Sunday, October 16, 2011
Saturday, October 15, 2011
Wednesday, October 12, 2011
कड़वा है मगर सच दुनिया का बताया है मुझे !
जिंदगी का अहम् सबक सिखाया है मुझे
ख़्वाब ओ हकीकत में फर्क दिखाया है मुझे
कल रोते हुए तुमने ही लगाया था गले
भरी महफ़िल में आज गैर जताया है मुझे
अपनी सफाई में मेरे पास कुछ है ही नहीं
मेरी ही नजर में गुनहगार बनाया है मुझे
दोस्ती के जैसे अब मतलब ही खो गये
रिश्तों का ये कैसा सच पढ़ाया है मुझे
शिकायत नहीं तुमसे गिला खुद से रहेगा
मेरी नजरों में ही कितना गिराया है मुझे
नादानी है मिलने जुलने को रफाकत कहना
कड़वा है मगर सच दुनिया का बताया है मुझे
ए दोस्त इसे हम अपना ही पागलपन कहेंगे
तेरी याद ने आज फिर बहुत रुलाया है मुझे !
Tuesday, October 11, 2011
ग़ज़ल
दिल कि बेखुदी को किसका ख्याल आया
खिड़की के चाँद में ये कौन मुस्कुराया..
बे मांगे मुरादों को पनाह मिल गयी
टूटते तारे ने जब , दुआ में सर उठाया
कतरा कतरा टूटती बारिशों कि तरह
लम्हों कि आरजू ने मुझको आजमाया
चाँदनी में रास्ता वो जुगनू भटक गया
और जलते चिराग ने,अँधेरा गले लगाया
मौजो कि रवानी को किनारा कौन देता
कागज़ कि नाव को जैसे पानी में बहाया !
- वंदना
Saturday, October 8, 2011
Friday, October 7, 2011
Thursday, October 6, 2011
ग़ज़ल
पलके झपकूं तो कोई ख़्वाब आये शायद
आज महताब जमीं पे उतर जाये शायद !
आँख से बह गया है काज़ल ये तमाम ,
आईना फिर से आज मुस्कुराये शायद !
सिसकियाँ खामोश अब होने लगी हैं,
दिल ए पागल अब कुछ गुनगुनाये शायद !
जाने वाले को कहो जरा पलटे तो सही,
न तड़पकर कोई आवाज़ लगाये शायद !
जीने कि तलब पल पल मर के जान ली ,
अब कद्र ए जिंदगी भी समझ आये शायद !
वन्दना
Tuesday, October 4, 2011
ग़ज़ल ..
कितनी भी करो नेकी कम पड़ ही जाती है
घना हो बोझ तो गर्दन अकड़ ही जाती है
कितनी ही सहूलियत से बुनो कोई भी रिश्ता
कहीं ना कहीं आखिर गाँठ पड़ ही जाती है
जहन कि दीवारों पर कुछ जख्म बाकी हैं
जमीं हिलती हैं तो दरारें भी पड़ ही जातीं हैं
भरम से परदे उठे तो जुस्तजू पे आ गिरे
फुलवारी उजडती है तो तितली उड़ ही जाती है
नदी हो या जिन्दगी,है अपने सफ़र पे कायम
जिधर से रास्ता देखे उधर को मुड ही जाती है
******
वंदना
Sunday, October 2, 2011
Subscribe to:
Posts (Atom)
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

-
बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
-
1 ( मन का कहन ) मोंजों का मैं राही हूँ ,झोंके है पग मेरा मैं किसी डाल ठहरा नहीं , हर एक पात पे मेरा डेरा 2 ऐ आसमां मुझे देखकर तू मुस्कुरा...
-
वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...