गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Wednesday, September 7, 2011
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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इन सिसकियों को कभी आवाज मत देना दिल के दर्द को तुम परवाज मत देना यहाँ अंदाज ए नजर न तुझे तेरी ही नजर में गाड़ दे भूलकर भी किसी को ...
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बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !....वंदना जी
ReplyDelete..गज़ब लिखा है
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित त्रिवेणी!
ReplyDeletekhoobsoorat abhivyakti shandar
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव सहेजा है ...बधाई वन्दना जी..
ReplyDeletekya fark padta hai phal hain ya nahin , us basere se we dur to nahin hote
ReplyDelete्वाह ………चंद शब्दों मे बहुत गहरी बात कह दी।
ReplyDeleteoye kya baat kahi hai,khoob kaha
ReplyDeleteरिश्तों की ख्वाबगोही अनोखी है.. बेनाम रिश्ते भी कुछ नाम छोड़ जाते हैं... सुंदर त्रिवेणी :)
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