गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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इन सिसकियों को कभी आवाज मत देना दिल के दर्द को तुम परवाज मत देना यहाँ अंदाज ए नजर न तुझे तेरी ही नजर में गाड़ दे भूलकर भी किसी को ...
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बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
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ReplyDeleteकोई ख़त बेनाम लिखा जाय /
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पोखर के पानी में
कागज़ की नाव बना
हिचकोले खाने यूं छोड़ दिया जाय /
मन तो आवारा सा
भटकने को पागल है
क्यों न उसे बंधन से मुक्त किया जाय /
वन्दना जी ! बात जब कविता की आये तो
मात्राओं का थोड़ा सा
ख्याल तो रखा जाय /
saanson ki lakeeron se ek khat benaam... aur kya chahiye
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteज़हन की सफहों पर
साँसों की लकीरों से,
कोई ख़त बेनाम
लिख जाए.
आपने तो दिल की कलम से लिख दिया ख़त.
बहुत खूब अहसास.
कोई क्यों न इस बेनाम ख़त को पढ़े.
सलाम.
शुक्रिया आप सभी का ,..कमियों को नजरअंदाज़ न करें...कृपया बताएं ताकि आगे कुछ शुद्ध लिखा भी जा सके और पढ़ा भी जा सके ...बहुत बहुत शुक्रिया :):)
ReplyDeleteजहन की सफहों पर ..... वाह सारगर्भित रचना , आभार
ReplyDeleteunmukt ,gambhir ,samvedanshil rachana . bahut sundar .
ReplyDeleteaabhar .
बहुत सुन्दर ....इतने खूबसूरत भाव है .....हाँ कोई ख़त यकीनन बेनाम लिखा जाए...
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
सुन्दर/सारगर्भित भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसांसो की लकीरों से, कोई ख़त बेनाम लिखा जाय़...ताज़गी भरी पंक्ति।
ReplyDeletemarmsparshi abhivyakti.
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