तमन्नाए जो मेरी है ,सभी रंगीन फवारे है
गुमनाम अँधेरी राहो में बस खुआबो के उजारे है
हकीकत के आईने में मगर बड़े कड़वे नज़ारे है
ख़ुद की गुमराहियों से फ़िर भी कोई गिला नही मुझे
प्यासे तो रह जाते है वो भी, जो दरिया के किनारे है
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Saturday, May 2, 2009
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
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बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
ख़ुद की गुमराहियों से फ़िर भी कोई गिला नही मुझे
ReplyDeleteप्यासे तो रह जाते है वो भी, जो दरिया के किनारे है
these lines are best.