गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Friday, June 29, 2012
Saturday, June 23, 2012
Wednesday, June 20, 2012
Sunday, June 17, 2012
Saturday, June 16, 2012
Saturday, June 9, 2012
गज़ल
यादों के आईने में जब माजी से आँख मिलाते है
कोई रंगत हँसा देती है अपने भरम रुलाते हैं
तेरी ख़ामोशी बनी बहाना अपनी हर इक चुप्पी का
बेसबब कुछ बात करों कि ताल्लुक घटते जाते हैं
पलके उठाकर दे दो रिहाई रोशन खाब बिचारों को
अंधियारों से लड़ते जुगनूं कब से आस लगाते हैं
कोई कहदे चाँद से जाकर समेट सके तो समेट ले
चांदनी कि इस रिदा पे चलके तसव्वुर आते जाते हैं
तन्हाई में खुद के होने का जिन्दा ये एहसास तो है
खुद से बाहर निकलो तो ये सायें भी खो जाते हैं
यूँ हि पुकारा आपने तो ....हैरत लाज़मी अपनी
अजनबी सी सदाओं से तो फरिस्ते भी डर जाते हैं
कोई खुशबू भटक रही है इन आँखों के वीराने में
खो गये हैं मौसम ए गुल कि कहीं नजर नही आते हैं
चलो छोडो अब रहने भी दो कोई और बात करो
बीत जाएँ जो पल वंदना कहाँ लौट कर आते हैं
- वंदना
Wednesday, June 6, 2012
Friday, June 1, 2012
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