गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Saturday, February 25, 2012
Wednesday, February 22, 2012
ख़ुदखुशी !!!
ये कैसी नींद थी
कि ये कैसा ख़्वाब था
क्या था ..कौन था
एक साया था ..
या भरम था ?
एक सबा का झौका
या कोई तूफ़ान था ?
बुझते चिरागों का
धुंआ महसूस होता है
क्या कोई रौशनी थी यहाँ
या यही फैला हुआ अँधेरा था ?
रंग फीके हो गए
या तस्वीरे धुंधला गयीं
चेहरे खो गए या
आईने बदल गए है ?
ये कैसा ठहराव है ?
ये कैसा सन्नाटा है ?
कोई सफर पर निकला तो है
मगर कुछ भूल आया है ?
क्या कोई चुरा ले गया
जीने का सब जरूरी सामान
सपने , तमन्ना ,आरजू
धडकन ,..साँसे ...
शायद जीने के बहाने भी !
या फिर अंतर्मन के इस
विषैले सागर में किसी ने
डूबकर खुदखुशी कि है ?
- वंदना
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