(इस कविता का भाव यही है के ...जीवन किसी के लिए अपनी दिशा नही बदलता ..जो जैसा है वैसा ही है और रहेगा..हमारे मन कि अज्ञानता इसे समझे या न समझे !)
क्यूं पश्चिम से दिन निकले ?
और क्यूं पूरब में सांझ ढले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर
ये जीवन उलटी चाल चले ?
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क्यूं नींदों में सूरज घर कर जाए ?
क्यूं विरह में न रात जले ,
ये अम्बर आखिर क्यूं झुक जाए
क्यूं चंदा का वनवास टले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर
ये जीवन उलटी चाल चले ?
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बनते पतझड़ के वो साक्षी
जिनसे कल के मधुमास थे
वही तरुण अब नही रहेंगे
जिनसे बहारों के उल्लास थे
बागवां कि पीड़ा पर क्यूं
पुष्पों कि मुस्कान खिले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर
ये जीवन उलटी चाल चले ?
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राम अहिल्या करते देखे
एक पत्थर के तासीर को !
रघुकुल रीत नहीं दे पायी
न्याय सिया कि पीर को !
मन कि कंचित कुंठाओं में
क्यूं समर्पण कि ये रीत पले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर
ये जीवन उलटी चाल चले ?
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ये सावन भला क्यूं पढ़ा करे
प्यासे मरुथल कि तहरीर को
क्यूं गंगा सा सत्कार मिले
यहाँ हर नदिया के नीर को
टूटी हुई किसी वीणा से ,
क्यूं सरगम कि तान मिले !
ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर
ये जीवन उलटी चाल चले !
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क्यूं पश्चिम से दिन निकले ?
और क्यूं पूरब में सांझ ढले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर
ये जीवन उलटी चाल चले ?
-- वंदना
आज 03- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सुन्दर भाव.....
ReplyDeleteबेहद गहन और सुन्दर रचना।
ReplyDeleteकविता जी सकारात्मकता का संदेश देती आपकी ये कविता पसंद आयी धन्यवाद......!
ReplyDeleteबहुत गभीर विषय को अपने भुत सहजता से वयक्त किया है...
ReplyDeletebahut hi sundar
ReplyDeletevah keya bath hai
Naye tewar naya andaaz .... first time is tarah ki kavita padhi tumhaari...really very ture aur jo usage kiya hai words ka under rhythm I luv this
ReplyDelete'रघुकुल रीति नहीं दे पायी
ReplyDeleteन्याय सिया की पीर को '
...............हृदयस्पर्शी प्रस्तुति
bahut sundar
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