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इन इठलाती हवाओ से कोई तो आगाज मिले
लम्हे कुछ गुनगुना रहें है, आलम से कोई साज मिले
परिंदों को देख कर आज ये ख्याल आ गया
जिंदगी ! जाने कब इन साँसों को परवाज मिले ?
ये अनजान शहर है कोई पहचानता तक नहीं तुमको
क्यू बार बार पलटते हो ..किधर से आवाज मिले ?
संजीदा लोगो में बैठकर बेबात मुस्कुराते हो
फिर कैसे यहाँ किसी से तुम्हारा मिजाज़ मिले ?
तन्हाई ..बज्म ए एहसास कि मेहमान हुई जाती है
आज फिर इन धडकनों को शायद दिल का कोई राज़ मिले !
vandana
8/29/`10