
ek kamjor si najm hai ..sayad isme bhi kuch sudhar ho sakta tha ..par nahi kiya uske liye sorry ..jhelo aap sab :)
चुराए थे कुछ रंग
कल सांझ इन्द्र धनुस से
कुछ तितलियों से उधर लिए थे ..
कुछ सफ़क पर फैली
लालिमा समेटी थी
इन आँखों में मैंने ..
और हाँ
फूलो से भी
मिलना हुआ था मेरा
नजरो ने उनसे भी
उधारी कर ली ...
सोचा था
सजा कर एक ख़्वाब
बाँट दूँगी सबको ..
महकेगी फिजाओं में
उस एक ख़्वाब कि खुशबू ......
आदत से मजबूर
छलक ही गए ये आंसू पलकों से .
धुल गया वो बिन सजा ख़्वाब
कितने फीके निकले सारे रंग ..
और मैं बेकार में कर्जवान हो गयी.