
सितारों कि इस महफ़िल में चाँद तन्हा सा क्यूं है
खामोश है लेकिन इसके होठो पर ये शिकवा सा क्यूं है
तेरे ही दम से हैं ये आसमां कि रोनके.. मैं हैरान हूँ
सबकी आँखों का नूर आज खुद से खफा सा क्यूं है
कुछ पाकर के है खोना कुछ खोकर के है पाना
कोई समझाए जरा जिन्दगी एक जुआ सा क्यूं है
उन आँखों कि वो मस्ती मदहोश कर गयीं थी
आईना पूछ बैठा इन आँखों में ये नशा सा क्यूं है
कुछ जल जल कर बुझता रहा सीने में मेरे
कोई क्या जाने के इन आँखों में ये धुंआ सा क्यूं है
वो एक सख्स जो जुदा सा है ज़माने भर में
मेरा कोई नहीं .....फिर भी खुदा सा क्यूं है..