गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Saturday, September 26, 2009
Sunday, September 20, 2009
पुरानी कविता
लिखना मेरा शोक कम ,मजबूरी (जूनून ) ज्यादा है
लिखना मेरा शोक कम , मजबूरी ज्यादा है ..
जो हर काम के आड़े आ जाती है .......
मैं अलमारी से किताब निकालती हूँ ,
हाथ मैं डायरी आ जाती है .......
जब अपनी रची कविताओ को
पढ़ती हूँ तो सकून मिलता है ,
तखलीफ़ तब होती जब
क्लास के रिजुल्ट में ग्रेड 'C' आ जाती है ....
खिड़की पर बैठ कर जब उड़ते हुए पंछियों से
बातें करती हूँ तो अच्छा लगता है ,
बुरा तब लग जाता है जब
'बावली ' कहकर माँ बहार से आवाज लगाती है ......
जब अकेली तनहा रातो में
चाँद से बाते करती हूँ तो अच्छा लगता है
गुस्सा तब आ जाता है जब कम्बक्त घटा छा जाती है .....
जब आईने के सामने खड़े होकर मुस्कुराती हूँ तो अच्छा लगता है
तखलीफ़ तब होती है जब अचानक
दिल सिसकने लगता है और आंखे भर आती है ....
जिसे वर्षो से नही देखा मैंने
उसकी यांदो में जीना अच्छा लगता है
वो दस्तूरों से आजाद बचपन ,
वो बेशर्तीय दोस्ती याद आ जाती है .....
जी करता है उससे मिलूँ तो चिपट कर रोऊं मैं ,
मगर ये ख्याल दिल की चोखट से ही वापस लोट जाता है >
जब ज़माने की याद आ जाती है ..............***
जो हर काम के आड़े आ जाती है .......
मैं अलमारी से किताब निकालती हूँ ,
हाथ मैं डायरी आ जाती है .......
जब अपनी रची कविताओ को
पढ़ती हूँ तो सकून मिलता है ,
तखलीफ़ तब होती जब
क्लास के रिजुल्ट में ग्रेड 'C' आ जाती है ....
खिड़की पर बैठ कर जब उड़ते हुए पंछियों से
बातें करती हूँ तो अच्छा लगता है ,
बुरा तब लग जाता है जब
'बावली ' कहकर माँ बहार से आवाज लगाती है ......
जब अकेली तनहा रातो में
चाँद से बाते करती हूँ तो अच्छा लगता है
गुस्सा तब आ जाता है जब कम्बक्त घटा छा जाती है .....
जब आईने के सामने खड़े होकर मुस्कुराती हूँ तो अच्छा लगता है
तखलीफ़ तब होती है जब अचानक
दिल सिसकने लगता है और आंखे भर आती है ....
जिसे वर्षो से नही देखा मैंने
उसकी यांदो में जीना अच्छा लगता है
वो दस्तूरों से आजाद बचपन ,
वो बेशर्तीय दोस्ती याद आ जाती है .....
जी करता है उससे मिलूँ तो चिपट कर रोऊं मैं ,
मगर ये ख्याल दिल की चोखट से ही वापस लोट जाता है >
जब ज़माने की याद आ जाती है ..............***
Saturday, September 12, 2009
" तू " ( सच न सही फ़साना तो है ...सपना ही सही सुहाना तो है)
"तू वो अफसाना है जिसे सबको सुनाने को दिल करता है
तू वो गजल है जिसे जुबां पर लाने को दिल करता है
तू वो गीत है जिसे बारबार गुनगुनाने को दिल करता है
तू वो नगमा है जिसे भरी महफिल में गाने को दिल करता है "
तू वो गजल है जिसे जुबां पर लाने को दिल करता है
तू वो गीत है जिसे बारबार गुनगुनाने को दिल करता है
तू वो नगमा है जिसे भरी महफिल में गाने को दिल करता है "
तू वो सपना है जिसे आँखों में सजाने को दिल करता है
तू वो खुसबू है जिसे सांसो में बसाने को दिल करता है
तू वो खुसबू है जिसे सांसो में बसाने को दिल करता है
तू वो दरिया है जिसमे डूब जाने को दिल करता है
तू वो एहसास है जिसमे सिमट जाने को दिल करता है
तू वो जाम है जिसे लबों तक लाने को दिल करता है
तू वो एहसास है जिसमे सिमट जाने को दिल करता है
तू वो जाम है जिसे लबों तक लाने को दिल करता है
तू वो नशा है जिसमे होश गवाने को दिल करता है
तू वो परछाई है जिसे छू लेने को दिल करता है
तू वो राज है जिसे सबसे छूपाने को दिल करता है
तू चाहत है मेरी तुझे पाने को दिल करता है
तू मोहब्बत है मेरी तुझे दुनिया से चुराने को दिल करता है
तू आशकी है मेरी तेरे इश्क में खुद को मिटने को दिल करता है
तू हम राही है मेरा तुझे अपना बनाने को दिल करता है
मैं नही जानती "तू " क्या है ....
बस एक खुआब जिसे हकीकत बनाने को दिल करता है
तू वो परछाई है जिसे छू लेने को दिल करता है
तू वो राज है जिसे सबसे छूपाने को दिल करता है
तू चाहत है मेरी तुझे पाने को दिल करता है
तू मोहब्बत है मेरी तुझे दुनिया से चुराने को दिल करता है
तू आशकी है मेरी तेरे इश्क में खुद को मिटने को दिल करता है
तू हम राही है मेरा तुझे अपना बनाने को दिल करता है
मैं नही जानती "तू " क्या है ....
बस एक खुआब जिसे हकीकत बनाने को दिल करता है
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