दिल मुझसे पूछता है ये बात हर बहाने से
क्या जिंदगी होगी आसां तुझे भुलाने से ?
मुख़्तसर सा असर हो तो दिलासा भी दूँ
मर्ज घटता नही किसी का, जहर खाने से
है मुनासिब हम इसको खुदखुशी ही कहें
गुनाह कम नही होगा इलज़ाम लगाने से
गुजरे लम्हों कि तस्वीर निखर जाती है
दिल के दरिया में बस इक उछाल आने से
सोचते हि तुझे घटाओ में दिए जल उठे
जाने बारिशों पे क्या गुजरती तेरे आने से
मीठा हो जाता है हर दर्द गुनगुनाने से
- वंदना