Wednesday, March 27, 2013

हम खुद से बाहर कहाँ तक जायेंगे



थक जायेंगे तो यहीं लौटकर आयेंगे 
हम खुद से बाहर कहाँ तक जायेंगे 

झंझोड़ कर जगा दे इस खाब से कोई 
वरना उम्मीदों के पर निकल आयेंगे 

कोई तस्लीम* बाकी हो दरमियाँ अपने 
इतना अगर घुटेंगे तो मर ही जायेंगे !

हर चेहरे पे लिखी है एक ही कहानी 
कितनी आँखों में खुद को पढ़ते जायेंगे 

कबूलते हैं आज अपने हिस्से का सच 
अपने आप से कब तक मुकरते जायेंगे 

जिंदगी तुझको ये पहले से बताना था 
मौत से पहले भी ऐसे सबात*आयेंगे !


वंदना 

Tasleem - greeting , Sabaat - thahraav


तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...