Saturday, September 21, 2013

इश्क





 खालीपन से भरी
वो जब तनहा 
दिल के किसी 
कोने में सिमटकर 
बैठती है 

तलाशती है  खुद में 
एक बाँवरे पन को 
वही जो किसी के 
होने तक साथ था 


खोजती है उस इश्क को
जो उसके बाँवरे पन ने 
आखरी सी साँसों में 
जिया था  शायद ...

ढूंढती हूँ  उसे 
जहन में लगी
वक्त कि तस्वीरों  में

मगर
इश्क रूप नही है
इश्क सूरत नही है
इश्क मूरत नही है 
इश्क काम नही है
इश्क आँखे नही हैं
इश्क  आवाज़ नही है




काश  ऐसा होता
तो मन कि तृप्ति
सरलतम  हो सकती थी
और जिंदगी बहुत आसान

जो ठहरे तो दरिया है 
उड़े तो जैसे  बादल 

बरसे तो सावन है
कभी आँख का बहता काजल 

बूँद बूँद किसी प्यास में बँटता
दिल की झील का पानी है। 

एक समंदर खुद में लेकर
बहती नदिया की रवानी है 

जिंदगी के साज़ पे नाचती 
रूह कि टीस पुरानी है  !

आखों में पलकर जवां होती 
इश्क एक  मौन कहानी है




- वंदना







8 comments:

  1. behtarin, बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

    ReplyDelete
  3. जिंदगी के साज़ पे नाचती
    रूह कि टीस पुरानी है !
    badhiya...

    ReplyDelete
  4. जिंदगी के साज़ पे नाचती
    रूह कि टीस पुरानी है !
    badhiya...

    ReplyDelete
  5. इश्क कों शब्दों में व्यक्त ही नही किया जा सकता |
    “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”

    ReplyDelete
  6. काश ऐसा होता
    तो मन कि तृप्ति
    सरलतम हो सकती थी
    और जिंदगी बहुत आसान------

    वाह बहुत सुंदर अनुभूति,मन को छूती हुई
    प्रेम का कॊमल अहसास
    बधाई

    ReplyDelete
  7. आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    आभार
    उम्मीद तो हरी है-----

    ReplyDelete
  8. आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 26/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
    आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...