Monday, January 30, 2012

गजल.




साँसों में गुम गयी या नजारों में खो गयी
नज़्म कोई मेरी इन सितारों में खो गयी

दिल के अदब को लहरें देतीं है सलामियाँ
प्यास जो दरिया थी ,किनारों में खो गयी

बात वो दिल कि जिसकी कोई जुबाँ नही
खुशबू बनके उडी और बहारों में खो गयी

 दिल के अदब को लहरें देतीं है सलामियाँ
प्यास जो दरिया थी ,किनारों में खो गयी

नींदे ले उडी हैं ......ये ख़्वाबों कि तितलियाँ
जैसे चाँद कि परी    इन तारों  में खो गयी 


होता बेख्यालियों का   .अपना ही मिजाज़ है 

तरन्नुम थी ग़ज़ल कि  जो अशारों में खो गयी 


- वंदना 




10 comments:

  1. बहुत खूब.. बहुत सुन्दर नज्म..

    ReplyDelete
  2. bahut khoobsurat tasveer ke sath khoobsurat gajal..

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन ग़ज़ल....बहुत खूब.....

    ReplyDelete
  4. बहूत हि शानदार गजल है ,

    ReplyDelete
  5. खूबसूरत ग़ज़ल.
    नयी पुरानी हलचल से आना हुआ पहली बार आपके इस ब्लौग पर! बहुत अच्छा लगा!

    ReplyDelete
  6. आज 05/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  7. नज़्म कोई मेरी,इन सितारों मेम खो गई,तरन्नुम थी गज़ल,अशारों मे खो गई—क्या खूब.

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...