Thursday, January 12, 2012

शायर मन ..

एक आवारा सी ऊब
दिन भर कि भागदौड से
लम्हे चुराकर  एकांत में
कुछ पल ..खुद में 

सिमटकर  बैठ गयी ..



और आलसी सा शायर मन
नींद से बोझिल आँखे लिए
खिड़की पर सिर टिकाये
चाँद के वरक पलट रहा हैं !
 


देख रहा है अपने साथ
जागती.... इस रात को ..
साँसों में उतरती शीतल चांदनी को
जुगनुओं कि जलती बुझती तकदीर को
पत्तो पर फैलती शबनम को ..
.
मगर ढूंढ रहा है उन शब्दों को
जिनमे लपेट सके ये बिखरे हुए
तमाम सितारे ...तलाश रहा है
अपने भीतर एक सन्दर्भ को
ताकि कुछ निर्जीव से
एहसासों को  अर्थ मिल सकें !

मगर दिल के अलाप
उसके  किसी सुर से
समझोता नही चाहते
वह उसी तरन्नुम में बहना चाहते हैं
जो टीस बनकर दबी पड़ी है
सीने कि जाने कौन सी परतो में ..

जिसे बाँधा हुआ उसने अपने
अहम् और स्वाभिमान कि बेड़ियों से
जो अगर गलती से भी खुल जाए
तो ये पुरवाई पतझड़ को
बहारों से भर दे !
थके परिंदों कि उड़ानों को
नये आकाश मिल जाएँ ..
बादल बे मौसम इस तरह बरसें
कि प्यास सावन से हार जाये !.

गीत ..नज्म ..गजल ...
एक इबादत कि तरह
सुकून का मेह बनकर
बरस पड़ें .इस बंजर
मन के आँगन में ..

मगर ये पागल मन
ये समझदारी कभी नही करता
सिर्फ  तलाश रहा है
अर्थहीन बातो के सन्दर्भ
ताकि कोई तुकबंद रचना
अहम् को संतुस्ट कर सके..!



"मुझे लिखकर सुकूँ आया
तुम्हे पढ़कर सुकूँ आया
उसे हार में भी जीत मिली
जिसे शब्दों को जादू  आया "

- वंदना 


6 comments:

  1. sach me apke shabdo me jaadu hai....

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  2. absolutely amazinp piece...loved the thought-process!!

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  3. बहुत सुन्दर..

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  4. एक शायर की कसक को बखूबी उकेरा है आपने। सुंदर अभिव्यक्ति।

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...