Thursday, September 29, 2011

त्रिवेणी









एक बात को कहीं हमने कह कर खो दिया ,

एक ज़हन में रही और फ़साना बनती गयी !


चुप्पियाँ सिखाती हैं बातों का मोल रखना !















वंदना

5 comments:

  1. बहुत अच्छी पंक्तिया....

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  2. आपने बहुत दिन बाद मेरे ब्लॉग पर दर्शन दिये.
    आभारी हूँ.
    आपकी त्रिवेणी रचना सुन्दर लगी.

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  3. चुप्पियाँ हमेशा से ही बोल से अधिक प्रभावशाली होती है, एक खूबसूरत अहसास

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  4. गज़ब ... सच है चुप्पिया सिखायती हैं ... लाजवाब ...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...