Sunday, September 26, 2010

काश !



काश ! के जिन्दगी से आगे
हम एक कदम बढ़ाये
खुद को खुद से ले चले कहीं दूर
जहाँ अहम् कि बेडिया
मासूम सी ख्वाहिशो को
कभी जकड ना पायें ..

ना स्वार्थी से सपने
इन लम्हों को छीन ना पायें..
हर पल में बीतती उम्र ठहर जाये
किसी मासूम से लम्हे कि ठंडी छाँव में !

जहाँ हवा में उछलती ख्वाइशे
हर बेबशी को ठोकर मारती हुई
आसमां के सीने पर लिख दे
अपनी उसूलों कि तहरीर..
जो सूरज कि तेज किरणों कि तरह
चुभती रहे इस जहां कि आँखों में बेसक
कोई बादल कितना बरसले कितना भी गरजले
न मिट सके कभी वो लिखा हुआ सब कुछ
बिल्कुल मेरी हथेलियों पर बनी
चंद लकीरों कि तरह
जिसे रोज पढ़े ये जहाँ !

दिल को बेफिजूल किसी से इल्तजा ना हो
जहाँ बेबुनियाद कोई एहसास
दिल कि जड़े ना कुरेद पाए
कोई टीस सीने से उठकर जब्त होती हुई
गले कि रगों में दम ना तोड़ती हो ...

जहाँ किसी कि चाह ना सांस ले
निर्जीव सी हृदय पटल पर
जहाँ खुद को खोने कि निराशा
गुनाह बनकर साथ ना चलती हो

काश !के जिन्दगी से आगे
हम एक कदम बढ़ाये
खुद को खुद से ले चले कहीं दूर...

-वंदना

Friday, September 17, 2010

सांझ कि बरसात



देख के नन्ही नन्ही बूँदें

परिंदों को मस्ती छाई ..

भीगी भीगी सी सांझ ने

जैसे पायल सी छनकाई...


ना सागर ने तपन उठाई

ना शफक पर रौशनी छाई

बादलो कि ओट लेकर

आज चुपके से रात आयी..


कुछ बूंदे खिड़की पर, मेरी

सुधियों से मिलने आयीं

मन तो जाने कहाँ सो गया

बैरन अंखियों ने नींद गवाई !!

vandana

9/16/2010

Tuesday, September 14, 2010

बस यूँ ही...




हो सकता है ...अनजाने में ,
तुम्हारा दिल दुखाया हो
मेरी किसी बेफिजूल सी बात ने ..
हो सकता है मैंने अपने वजूद के
दायरे को अनदेखा किया हो ..
हो सकता है मैंने लांघी हो
सीमायें तय करती ओट कि दीवार ..

यूँ तो जिंदगी में कभी भी
नही दिया ये मौका किसी को
हर छोटी बड़ी बात कि सीमाएं
मेरे पास पहले से तय होतीं है
मालूम है ....ये ताकत
कमजोरी भी है मेरी , मगर
फिर भी उसूल नहीं बदले कभी !


मगर हो सकता है अनजाने में
मेरी कोई दखलांदाजी चुभी हो तुम्हे ?
क्या सचमुच मैं ऐसा कर सकती हूँ ?
प्लीज़ ..कह दो ना .......नहीं !


खैर ..जाने अनजाने उस हर एक
कमजोर पल के लिए..
जो मुझे गुनहगार बनाता है
माफ़ न कर सको न सही,
बस हो सके तो ..अपने
दिल में कोई मैल मत रखना ..

और हाँ, कोई fevor नहीं चाहिए
ना ही कोई obligation माँगा है
मैंने सिर्फ खुद को जिया पूरे मन से
किसी कि रहमत चुनी नहीं कभी
ना उम्मीद कि किसी भी रिश्ते से
खुद के लिए ...कोई संभाले मुझे
मेरी कमजोरियों का हौंसला बनकर..

बस यूँ ही आज फिर एक बार
खुद को परखना चाहती हूँ
ताकि खुद पर मेरा एतबार
झूठा ना पड़ जाये कहीं !!
Vandana

Tuesday, September 7, 2010

दिल के दर्द को तुम परवाज मत देना



इन सिसकियों को कभी आवाज मत देना
दिल के दर्द को तुम परवाज मत देना

यहाँ अंदाज ए नजर न तुझे तेरी ही नजर में गाड़ दे
भूलकर भी किसी को दिल का राज मत देना

हर एक टूटते भ्रम का अंजाम बुरा होता है
कभी किसी को बेबुनियाद आगाज़ मत देना

यहाँ पत्थर में रखें आस्था तो नैय्या पार हो जाये
बेफिजूल किसी सर को खुदा का ताज मत देना

इंसानों में फरिस्ते यहाँ यूँ ही नहीं मिलते
कभी कमजोर हाथो में अरमाँ ए नाज़ मत देना

यूँ हर बात कि कोई वजह हो ये जरुरी तो नहीं
मगर बेवजह किसी मूक बात को अल्फाज़ मत देना

Vandana





Thursday, September 2, 2010



हर एक झंकार कि कीमत को घूँघरू समझता है
ये पैर इस पायल कि अदब ओ आबरू समझता है

फकत इनकी ही बेजुबाँनी समझता नहीं कोई
ये अश्क सांसो से हवाओं कि सब गुफ्तगू समझता है

इसकी अपनी ही रवानी है अपना ही सफ़र है
ये दिल मेरा कहाँ जिंदगी कि दू ब दू* समझता है

पलकों कि सरहद के उस तरफ कि तीरगी में
महज एक जुगनू इन अंधेरो कि आरजू समझता है

जिगर कि हर खराँच को महरूमियत से भर देता है
वो जज्बातों के फटे पहरन पर हुनर ए रफू समझता है

मैं हर बार खुद को हारकर अपने अहम् से जीत जाता हूँ
कि शायद वो मेरी हर एक खामोश जुस्तजू समझता है

दू ब दू*= भागदौड

vandana

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...